3. मैं ही एप्रैम को पांव-पांव चलाता था, और उन को गोद में लिए फिरता था, परन्तु वे न जानते थे कि उनका चंगा करने वाला मैं हूं।
4. मैं उन को मनुष्य जानकर प्रेम की डोरी से खींचता था, और जैसा कोई बैल के गले की जोत खोल कर उसके साम्हने आहार रख दे, वैसा ही मैं ने उन से किया।
5. वह मिस्र देश में लौटने न पाएगा; अश्शूर ही उसका राजा होगा, क्योंकि उसने मेरी ओर फिरने से इनकार कर दिया है।
6. तलवार उनके नगरों में चलेगी, और उनके बेड़ों को पूरा नाश करेगी; और यह उनकी युक्तियों के कारण होगा।
7. मेरी प्रजा मुझ से फिर जाने में लगी रहती है; यद्यपि वे उन को परमप्रधान की ओर बुलाते हैं, तौभी उन में से कोई भी मेरी महिमा नहीं करता॥
8. हे एप्रैम, मैं तुझे क्योंकर छोड़ दूं? हे इस्राएल, मैं क्योंकर तुझे शत्रु के वश में कर दूं? मैं क्योंकर तुझे अदमा की नाईं छोड़ दूं, और सबोयीम के समान कर दूं? मेरा हृदय तो उलट पुलट हो गया, मेरा मन स्नेह के मारे पिघल गया है।