16. परन्तु उसका लोहू न खाना; उसे जल की नाईं भूमि पर उंडेल देना।
17. फिर अपने अन्न, वा नये दाखमधु, वा टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय-बैलों वा भेड़-बकरियों के पहिलौठे, और अपनी मन्नतों की कोई वस्तु, और अपने स्वेच्छाबलि, और उठाई हुई भेंटें अपने सब फाटकों के भीतर न खाना;
18. उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने उसी स्थान पर जिस को वह चुने अपने बेटे बेटियों और दास दासियों के, और जो लेवीय तेरे फाटकों के भीतर रहेंगे उनके साथ खाना, और तू अपने परमेश्वर यहोवा के साम्हने अपने सब कामों पर जिन में हाथ लगाया हो आनन्द करना।
19. और सावधान रह कि जब तक तू भूमि पर जीवित रहे तब तक लेवियों को न छोड़ना॥
20. जब तेरा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तेरा देश बढ़ाए, और तेरा जी मांस खाना चाहे, और तू सोचने लगे, कि मैं मांस खाऊंगा, तब जो मांस तेरा जी चाहे वही खा सकेगा।
21. जो स्थान तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बनाए रखने के लिये चुन ले वह यदि तुझ से बहुत दूर हो, तो जो गाय-बैल भेड़-बकरी यहोवा ने तुझे दी हों, उन में से जो कुछ तेरा जी चाहे, उसे मेरी आज्ञा के अनुसार मार के अपने फाटकों के भीतर खा सकेगा।
22. जैसे चिकारे और हरिण का मांस खाया जाता है वैसे ही उन को भी खा सकेगा, शुद्ध और अशुद्ध दोनों प्रकार के मनुष्य उनका मांस खा सकेंगे।
23. परन्तु उनका लोहू किसी भांति न खाना; क्योंकि लोहू जो है वह प्राण ही है, और तू मांस के साथ प्राण कभी भी न खाना।
24. उसको न खाना; उसे जल की नाईं भूमि पर उंडेल देना।
25. तू उसे न खाना; इसलिये कि वह काम करने से जो यहोवा की दृष्टि में ठीक हैं तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी भला हो।
26. परन्तु जब तू कोई वस्तु पवित्र करे, वा मन्नत माने, तो ऐसी वस्तुएं ले कर उस स्थान को जाना जिस को यहोवा चुन लेगा,
27. और वहां अपने होमबलियों के मांस और लोहू दोनों को अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी पर चढ़ाना, और मेलबलियों का लोहू उसकी वेदी पर उंडेल कर उनका मांस खाना।
28. इन बातों को जिनकी आज्ञा मैं तुझे सुनाता हूं चित्त लगाकर सुन, कि जब तू वह काम करे जो तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला और ठीक है, तब तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी सदा भला होता रहे।
29. जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को जिनका अधिकारी होने को तू जा रहा है तेरे आगे से नष्ट करे, और तू उनका अधिकारी हो कर उनके देश में बस जाए,
30. तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि उनके सत्यनाश होने के बाद तू भी उनकी नाईं फंस जाए, अर्थात यह कहकर उनके देवताओं के सम्बन्ध में यह पूछपाछ न करना, कि उन जातियों के लोग अपने देवताओं की उपासना किस रीति करते थे? मैं भी वैसी ही करूंगा।
31. तू अपने परमेश्वर यहोवा से ऐसा व्यवहार न करना; क्योंकि जितने प्रकार के कामों से यहोवा घृणा करता है और बैर-भाव रखता है, उन सभों को उन्होंने अपने देवताओं के लिये किया है, यहां तक कि अपने बेटे बेटियों को भी वे अपने देवताओं के लिये अग्नि में डालकर जला देते हैं॥