15. हमारे मन का हर्ष जाता रहा, हमारा नाचना विलाप में बदल गया है।
16. हमारे सिर पर का मुकुट गिर पड़ा है; हम पर हाय, क्योंकि हम ने पाप किया है!
17. इस कारण हमारा हृदय निर्बल हो गया है, इन्हीं बातों से हमारी आंखें धुंधली पड़ गई हैं,
18. क्योंकि सिय्योन पर्वत उजाड़ पड़ा है; उस में सियार घूमते हैं।
19. परन्तु हे यहोवा, तू तो सदा तक विराजमान रहेगा; तेरा राज्य पीढ़ी-पीढ़ी बना रहेगा।