12. हाकिम हाथ के बल टांगे गए हैं; और पुरनियों का कुछ भी आदर नहीं किया गया।
13. जवानों को चक्की चलानी पड़ती है; और लड़के-बाले लकड़ी का बोझ उठाते हुए लडखड़ाते हैं।
14. अब फाटक पर पुरनिये नहीं बैठते, न जवानों का गीत सुनाईं पड़ता है।
15. हमारे मन का हर्ष जाता रहा, हमारा नाचना विलाप में बदल गया है।
16. हमारे सिर पर का मुकुट गिर पड़ा है; हम पर हाय, क्योंकि हम ने पाप किया है!
17. इस कारण हमारा हृदय निर्बल हो गया है, इन्हीं बातों से हमारी आंखें धुंधली पड़ गई हैं,
18. क्योंकि सिय्योन पर्वत उजाड़ पड़ा है; उस में सियार घूमते हैं।