9. मेरे मार्गों को उसने गढ़े हुए पत्थरों से रोक रखा है, मेरी डगरों को उसने टेढ़ी कर दिया है।
10. वह मेरे लिये घात में बैठे हुए रीछ और घात लगाए हुए सिंह के समान है;
11. उसने मुझे मेरे मार्गों से भुला दिया, और मुझे फाड़ डाला; उसने मुझ को उजाड़ दिया है।
12. उसने धनुष चढ़ा कर मुझे अपने तीर का निशाना बनाया है।
13. उसने अपनी तीरों से मेरे हृदय को बेध दिया है;
14. सब लोग मुझ पर हंसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गीत गाते हैं,
15. उसने मुझे कठिन दु:ख से भर दिया, और नागदौना पिलाकर तृप्त किया है।
16. उसने मेरे दांतों को कंकरी से तोड़ डाला, और मुझे राख से ढांप दिया है;
17. और मुझ को मन से उतार कर कुशल से रहित किया है; मैं कल्याण भूल गया हूँ;
18. इसलिऐ मैं ने कहा, मेरा बल नाश हुआ, और मेरी आश जो यहोवा पर थी, वह टूट गई है।
19. मेरा दु:ख और मारा मारा फिरना, मेरा नागदौने और-और विष का पीना स्मरण कर!
20. मैं उन्हीं पर सोचता रहता हूँ, इस से मेरा प्राण ढला जाता है।
21. परन्तु मैं यह स्मरण करता हूँ, इसीलिये मुझे आाशा है:
22. हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है।
23. प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है।
24. मेरे मन ने कहा, यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उस में आशा रखूंगा।