47. भय और गड़हा, उजाड़ और विनाश, हम पर आ पड़े हैं;
48. मेरी आंखों से मेरी प्रजा की पुत्री के विनाश के कारण जल की धाराएं बह रही है।
49. मेरी आंख से लगातार आंसू बहते रहेंगे,
50. जब तक यहोवा स्वर्ग से मेरी ओर न देखे;
51. अपनी नगरी की सब स्त्रियों का हाल देखने पर मेरा दु:ख बढ़ता है।
52. जो व्यर्थ मेरे शत्रु बने हैं, उन्होंने निर्दयता से चिडिय़ा के समान मेरा अहेर किया है;
53. उन्होंने मुझे गड़हे में डाल कर मेरे जीवन का अन्त करने के लिये मेरे ऊपर पत्थर लुढ़काए हैं;