10. वह मेरे लिये घात में बैठे हुए रीछ और घात लगाए हुए सिंह के समान है;
11. उसने मुझे मेरे मार्गों से भुला दिया, और मुझे फाड़ डाला; उसने मुझ को उजाड़ दिया है।
12. उसने धनुष चढ़ा कर मुझे अपने तीर का निशाना बनाया है।
13. उसने अपनी तीरों से मेरे हृदय को बेध दिया है;
14. सब लोग मुझ पर हंसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गीत गाते हैं,
15. उसने मुझे कठिन दु:ख से भर दिया, और नागदौना पिलाकर तृप्त किया है।