1. उसके रोष की छड़ी से दु:ख भोगने वाला पुरुष मैं ही हूं;
2. वह मुझे ले जा कर उजियाले में नहीं, अन्धियारे ही में चलाता है;
3. उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है।
4. उसने मेरा मांस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है;
5. उसने मुझे रोकने के लिये किला बनाया, और मुझ को कठिन दु:ख और श्रम से घेरा है;
6. उसने मुझे बहुत दिन के मरे हुए लोगों के समान अन्धेरे स्थानों में बसा दिया है।
7. मेरे चारों ओर उसने बाड़ा बान्धा है कि मैं निकल नहीं सकता; उसने मुझे भारी सांकल से जकड़ा है;
8. मैं चिल्ला चिल्लाके दोहाई देता हूँ, तौभी वह मेरी प्रार्थना नहीं सुनता;