13. वेदी पर आग लगातार जलती रहे; वह कभी बुझने न पाए॥
14. अन्नबलि की व्यवस्था इस प्रकार है, कि हारून के पुत्र उसको वेदी के आगे यहोवा के समीप ले आएं।
15. और वह अन्नबलि के तेल मिले हुए मैदे में से मुट्ठी भर और उस पर का सब लोबान उठा कर अन्नबलि के स्मरणार्थ के इस भाग को यहोवा के सम्मुख सुखदायक सुगन्ध के लिये वेदी पर जलाए।
16. और उस में से जो शेष रह जाए उसे हारून और उसके पुत्र खा जाएं; वह बिना खमीर पवित्र स्थान में खाया जाए, अर्थात वे मिलापवाले तम्बू के आंगन में उसे खाएं।
17. वह खमीर के साथ पकाया न जाए; क्योंकि मैं ने अपने हव्य में से उसको उनका निज भाग होने के लिये उन्हें दिया है; इसलिये जैसा पापबलि और दोषबलि परमपवित्र है वैसा ही वह भी है।
18. हारून के वंश के सब पुरूष उस में से खा सकते हैं तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में यहोवा के हवनों में से यह उनका भाग सदैव बना रहेगा; जो कोई उन हवनों को छूए वह पवित्र ठहरेगा॥
19. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
20. जिस दिन हारून का अभिषेक हो उस दिन वह अपने पुत्रों के साथ यहोवा को यह चढ़ावा चढ़ाए; अर्थात एपा का दसवां भाग मैदा नित्य अन्नबलि में चढ़ाए, उस में से आधा भोर को और आधा सन्ध्या के समय चढ़ाए।
21. वह तवे पर तेल के साथ पकाया जाए; जब वह तेल से तर हो जाए तब उसे ले आना, इस अन्नबलि के पड़े हुए टुकड़े यहोवा के सुखदायक सुगन्ध के लिये चढ़ाना।
22. और उसके पुत्रों में से जो भी उस याजकपद पर अभिषिक्त होगा, वह भी उसी प्रकार का चढ़ावा चढ़ाया करे; यह विधी सदा के लिये है, कि यहोवा के सम्मुख वह सम्पूर्ण चढ़ावा जलाया जाये।
23. याजक के सम्पूर्ण अन्नबलि भी सब जलाए जाएं; वह कभी न खाया जाए॥
24. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
25. हारून और उसके पुत्रों से यह कह, कि पापबलि की व्यवस्था यह है; अर्थात जिस स्थान में होमबलिपशु वध किया जाता है उसी में पापबलिपशु भी यहोवा के सम्मुख बलि किया जाए; वह परमपवित्र है।
26. और जो याजक पापबलि चढ़ावे वह उसे खाए; वह पवित्र स्थान में, अर्थात मिलापवाले तम्बू के आँगन में खाया जाए।
27. जो कुछ उसके मांस से छू जाए, वह पवित्र ठहरेगा; और यदि उसके लोहू के छींटे किसी वस्त्र पर पड़ जाएं, तो उसे किसी पवित्रस्थान में धो देना।
28. और वह मिट्टी का पात्र जिस में वह पकाया गया हो तोड़ दिया जाए; यदि वह पीतल के पात्र में सिझाया गया हो, तो वह मांजा जाए, और जल से धो लिया जाए।