34. उस ने कहा; हे पतरस मैं तुझ से कहता हूं, कि आज मुर्ग बांग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि मैं उसे नहीं जानता॥
35. और उस ने उन से कहा, कि जब मैं ने तुम्हें बटुए, और झोली, और जूते बिना भेजा था, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुई थी? उन्होंने कहा; किसी वस्तु की नहीं।
36. उस ने उन से कहा, परन्तु अब जिस के पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही झोली भी, और जिस के पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले।
37. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि यह जो लिखा है, कि वह अपराधियों के साथ गिना गया, उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है; क्योंकि मेरे विषय की बातें पूरी होने पर हैं।
38. उन्होंने कहा; हे प्रभु, देख, यहां दो तलवारें हैं: उस ने उन से कहा; बहुत हैं॥
39. तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए।
40. उस जगह पहुंचकर उस ने उन से कहा; प्रार्थना करो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो।
41. और वह आप उन से अलग एक ढेला फेंकने के टप्पे भर गया, और घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा।
42. कि हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।
43. तब स्वर्ग से एक दूत उस को दिखाई दिया जो उसे सामर्थ देता था।
44. और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।
45. तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया; और उन से कहा, क्यों सोते हो?