17. तब उस ने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और कहा, इस को लो और आपस में बांट लो।
18. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि जब तक परमेश्वर का राज्य न आए तब तक मैं दाख रस अब से कभी न पीऊंगा।
19. फिर उस ने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उन को यह कहते हुए दी, कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।
20. इसी रीति से उस ने बियारी के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया कि यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।
21. पर देखो, मेरे पकड़वाने वाले का हाथ मेरे साथ मेज पर है।
22. क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिये ठहराया गया जाता ही है, पर हाय उस मनुष्य पर, जिस के द्वारा वह पकड़वाया जाता है!
23. तब वे आपस में पूछ पाछ करने लगे, कि हम में से कौन है, जो यह काम करेगा?
24. उन में यह वाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है
25. उस ने उन से कहा, अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं।