26. और पवित्र आत्मा से उस को चितावनी हुई थी, कि जब तक तू प्रभु के मसीह को देख ने लेगा, तक तक मृत्यु को न देखेगा।
27. और वह आत्मा के सिखाने से मन्दिर में आया; और जब माता-पिता उस बालक यीशु को भीतर लाए, कि उसके लिये व्यवस्था की रीति के अनुसार करें।
28. तो उस ने उसे अपनी गोद में लिया और परमेश्वर का धन्यवाद करके कहा,
29. हे स्वामी, अब तू अपने दास को अपने वचन के अनुसार शान्ति से विदा करता है।
30. क्योंकि मेरी आंखो ने तेरे उद्धार को देख लिया है।
31. जिसे तू ने सब देशों के लोगों के साम्हने तैयार किया है।
32. कि वह अन्य जातियों को प्रकाश देने के लिये ज्योति, और तेरे निज लोग इस्राएल की महिमा हो।
33. और उसका पिता और उस की माता इन बातों से जो उसके विषय में कही जाती थीं, आश्चर्य करते थे।