17. इस पर यीशु ने कहा, क्या दसों शुद्ध न हुए? तो फिर वे नौ कहां हैं?
18. क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्वर की बड़ाई करता?
19. तब उस ने उस से कहा; उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है॥
20. जब फरीसियों ने उस से पूछा, कि परमेश्वर का राज्य कब आएगा? तो उस ने उन को उत्तर दिया, कि परमेश्वर का राज्य प्रगट रूप से नहीं आता।
21. और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहां है, या वहां है, क्योंकि देखो, परमेश्वर का राज्य तुम्हारे बीच में है॥
22. और उस ने चेलों से कहा; वे दिन आएंगे, जिन में तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को देखना चाहोगे, और नहीं देखने पाओगे।
23. लोग तुम से कहेंगे, देखो, वहां है, या देखो यहां है; परन्तु तुम चले न जाना और न उन के पीछे हो लेना।
24. क्योंकि जैसे बिजली आकाश की एक ओर से कौन्धकर आकाश की दूसरी ओर चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा।
25. परन्तु पहिले अवश्य है, कि वह बहुत दुख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएं।
26. जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा।
27. जिस दिन तक नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह-शादी होती थी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया।
28. और जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे।
29. परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया।
30. मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।
31. उस दिन जो कोठे पर हो; और उसका सामान घर में हो, वह उसे लेने को न उतरे, और वैसे ही जो खेत में हो वह पीछे न लौटे।
32. लूत की पत्नी को स्मरण रखो।