18. एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूं, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिस ने मुझे भेजा।
19. उन्होंने उस से कहा, तेरा पिता कहां है? यीशु ने उत्तर दिया, कि न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।
20. ये बातें उस ने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था॥
21. उस ने फिर उन से कहा, मैं जाता हूं और तुम मुझे ढूंढ़ोगे और अपने पाप में मरोगे: जहां मैं जाता हूं, वहां तुम नहीं आ सकते।
22. इस पर यहूदियों ने कहा, क्या वह अपने आप को मार डालेगा, जो कहता है; कि जहां मैं जाता हूं वहां तुम नहीं आ सकते?
23. उस ने उन से कहा, तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूं; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं।
24. इसलिये मैं ने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वहीं हूं, तो अपने पापों में मरोगे।
25. उन्होंने उस से कहा, तू कौन है यीशु ने उन से कहा, वही हूं जो प्रारम्भ से तुम से कहता आया हूं।
26. तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैं ने उस से सुना हे, वही जगत से कहता हूं।
27. वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है।
28. तब यीशु ने कहा, कि जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूं, और अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूं।
29. और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उस ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूं, जिस से वह प्रसन्न होता है।
30. वह ये बातें कह ही रहा था, कि बहुतेरों ने उस पर विश्वास किया॥
31. तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्हों ने उन की प्रतीति की थी, कहा, यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।