23. इस्राएल का परमेश्वर सेनाओं का यहोवा यों कहता है: जब मैं यहूदी बंधुओं को उनके देश के नगरों में लौटाऊंगा, तब उन में यह आशीर्वाद फिर दिया जाएगा: हे धर्मभरे वासस्थान, हे पवित्र पर्वत, यहोवा तुझे आशीष दे!
24. और यहूदा और उसके सब नगरों के लोग और किसान और चरवाहे भी उस में इकट्टे बसेंगे।
25. क्योंकि मैं ने थके हुए लोगों का प्राण तृप्त किया, और उदास लोगों के प्राण को भर दिया है।
26. इस पर मैं जाग उठा, और देखा, ओर मेरी नीन्द मुझे मीठी लगी।
27. देख, यहोवा की यह वाणी है, कि ऐसे दिन आने वाले हैं जिन में मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों के लड़के-बाले और पशु दोनों को बहुत बढ़ाऊंगा।
28. और जिस प्रकार से मैं सोच सोचकर उन को गिराता और ढाता, नष्ट करता, काट डालता और सत्यानाश ही करता था, उसी प्रकार से मैं अब सोच सोचकर उन को रोपूंगा और बढ़ाऊंगा, यहोवा की यही वाणी है।
29. उन दिनों में वे फिर न कहेंगे कि पुरखा लोगों ने तो जंगली दाख खाई, परन्तु उनके वंश के दांत खट्टे हो गए हैं।
30. क्योंकि जो कोई जंगली दाख खाए उसी के दांत खट्टे हो जाएंगे, और हर एक मनुष्य अपने ही अधर्म के कारण मारा जाएगा।
31. फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आने वाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बान्धूंगा।
32. वह उस वाचा के समान न होगी जो मैं ने उनके पुरखाओं से उस समय बान्धी थी जब मैं उनका हाथ पकड़ कर उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया, क्योंकि यद्यपि मैं उनका पति था, तौभी उन्होंने मेरी वह वाचा तोड़ डाली।
33. परन्तु जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बान्धूंगा, वह यह है: मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, यहोवा की यह वाणी है।