7. धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो।
8. वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के तीर पर लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब घाम होगा तब उसको न लगेगा, उसके पत्ते हरे रहेंगे, और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्ता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा।
9. मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?
10. मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जांचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात उसके कामों का फल दूं।
11. जो अन्याय से धन बटोरता है वह उस तीतर के समान होता है जो दूसरी चिडिय़ा के दिए हुए अंडों को सेती है, उसकी आधी आयु में ही वह उस धन को छोड़ जाता है, और अन्त में वह मूढ़ ही ठहरता है।
12. हमारा पवित्र आराधनालय आदि से ऊंचे स्थान पर रखे हुए एक तेजोमय सिंहासन के समान है।
13. हे यहोवा, हे इस्राएल के आधार, जितने तुझे छोड देते हैं वे सब लज्जित होंगे; जो तुझ से भटक जाते हैं उनके नाम भूमि ही पर लिखे जाएंगे, क्योंकि उन्होंने बहते जल के सोते यहोवा को त्याग दिया है।
14. हे यहोवा मुझे चंगा कर, तब मैं चंगा हो जाऊंगा; मुझे बचा, तब मैं बच जाऊंगा; क्योंकि मैं तेरी ही स्तुति करता हूँ।
15. सुन, वे मुझ से कहते हैं, यहोवा का वचन कहां रहा? वह अभी पूरा हो जाए!
16. परन्तु तू मेरा हाल जानता है, मैं ने तेरे पीछे चलते हुए उतावली कर के चरवाहे का काम नहीं छोड़ा; न मैं ने उस आने वाली विपत्ति के दिन की लालसा की है; जो कुछ मैं बोला वह तुझ पर प्रगट था।