15. सुन, वे मुझ से कहते हैं, यहोवा का वचन कहां रहा? वह अभी पूरा हो जाए!
16. परन्तु तू मेरा हाल जानता है, मैं ने तेरे पीछे चलते हुए उतावली कर के चरवाहे का काम नहीं छोड़ा; न मैं ने उस आने वाली विपत्ति के दिन की लालसा की है; जो कुछ मैं बोला वह तुझ पर प्रगट था।
17. मुझे न घबरा; संकट के दिन तू ही मेरा शरणस्थान है।
18. हे यहोवा, मेरी आशा टूटने न दे, मेरे सताने वालों ही की आशा टूटे; उन्हीं को विस्मित कर; परन्तु मुझे निराशा से बचा; उन पर विपत्ति डाल और उन को चकनाचूर कर दे!
19. यहोवा ने मुझ से यों कहा, जा कर सदर फाटक में खड़ा हो जिस से यहूदा के राजा वरन यरूशलेम के सब रहने वाले भीतर-बाहर आया जाया करते हैं;
20. और उन से कह, हे यहूदा के राजाओं और सब यहूदियों, हे यरूशलेम के सब निवासियों, और सब लोगो जो इन फाटकों में से हो कर भीतर जाते हो, यहोवा का वचन सुनो।
21. यहोवा यों कहता है, सावधान रहो, विश्राम के दिन कोई बोझ मत उठाओ; और न कोई बोझ यरूशलेम के फाटकों के भीतर ले आओ।
22. विश्राम के दिन अपने अपने घर से भी कोई बोझ बाहर मत लेओ और न किसी रीति का काम काज करो, वरन उस आज्ञा के अनुसार जो मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दी थी, विश्राम के दिन को पवित्र माना करो।
23. परन्तु उन्होंने न सुना और न कान लगाया, परन्तु इसके विपरीत हठ किया कि न सुनें और ताड़ना से भी न मानें।