11. और बाहरी कोठरियों के द्वारा उस स्थान की ओर थे, जो खाली था, अर्थात एक द्वार उत्तर की ओर और दूसरा दक्खिन की ओर था; और जो स्थान रह गया, उसकी चौड़ाई चारों ओर पांच हाथ की थी।
12. फिर जो भवन मन्दिर के पश्चिमी आंगन के साम्हने था, वह सत्तर हाथ चौडा था; और भवन के आस पास की भीत पांच हाथ मोटी थी, और उसकी लम्बाई नब्बे हाथ की थी।
13. तब उस ने भवन की लम्बाई माप कर सौ हाथ की पाई; और भीतों समेत आंगन की भी लम्बाई माप कर सौ हाथ की पाई।
14. और भवन का पूवीं साम्हना और उसका आंगन सौ हाथ चौड़ा था।
15. फिर उसने पीछे के आंगन के साम्हने की भीत की लम्बाई जिसके दोनों ओर छज्जे थे, माप कर सौ हाथ की पाई; और भीतरी भवन और आंगन के ओसारों को भी मापा।
16. तब उसने डेवढिय़ों और झिलमिलीदार खिड़कियों, और आस पास के तीनों महलों के छज्जों को मापा जो डेवढ़ी के साम्हने थे, और चारों ओर उनकी तखता-बन्दी हुई थी; और भूमि से खिड़कियों तक और खिड़कियों के आस पास सब कहीं तख़ताबन्दी हुई थी।
17. फिर उसने द्वार के ऊपर का स्थान भीतरी भवन तक ओर उसके बाहर भी और आस पास की सारी भीत के भीतर और बाहर भी मापा।