4. फिर तू अपने बांयें पांजर के बल लेट कर इस्राएल के घराने का अधर्म अपने ऊपर रख; क्योंकि जितने दिन तू उस पांजर के बल लेटा रहेगा, उतने दिन तक उन लोगों के अधर्म का भार सहता रह।
5. मैं ने उनके अधर्म के वर्षों के तुल्य तेरे लिये दिन ठहराए हैं, अर्थात तीन सौ नब्बे दिन; उतने दिन तक तू इस्राएल के घराने के अधर्म का भार सहता रह।
6. और जब इतने दिन पूरे हो जाएं, तब अपने दाहिने पांजर के बल लेट कर यहूदा के घराने के अधर्म का भार सह लेना; मैं ने उसके लिये भी और तेरे लिये एक वर्ष की सन्ती एक दिन अर्थात चालीस दिन ठहराए हैं।
7. और तू यरूशलेम के घेरने के लिये बांह उघाड़े हुए अपना मुंह उधर कर के उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी करना।
8. और देख, मैं तुझे रस्सियों से जकडूंगा, और जब तक उसके घेरने के दिन पूरे न हों, तब तक तू करवट न ले सकेगा।
9. और तू गेहूं, जव, सेम, मसूर, बाजरा, और कठिया गेहूं ले कर, एक बासन में रख कर उन से रोटी बनाया करना। जितने दिन तू अपने पांजर के बल लेटा रहेगा, उतने अर्थात तीन सौ नब्बे दिन तक उसे खाया करना।
10. और जो भोजन तू खाए, उसे तौल तौलकर खाना, अर्थात प्रति दिन बीस बीस शेकेल भर खाया करना, और उसे समय समय पर खाना।
11. पानी भी तू माप कर पिया करना, अर्थात प्रति दिन हीन का छठवां अंश पीना; और उसको समय समय पर पीना।
12. और अपना भोजन जव की रोटियों की नाईं बना कर खाया करना, और उसको मनुष्य की बिष्ठा से उनके देखते बनाया करना।
13. फिर यहोवा ने कहा, इसी प्रकार से इस्राएल उन जातियों के बीच अपनी अपनी रोटी अशुद्धता से खाया करेंगे, जहां में उन्हें बरबस पहुंचाऊंगा।