1. और हे मनुष्य के सन्तान, तू एक ईंट ले और उसे अपने साम्हने रख कर उस पर एक नगर, अर्थात यरूशलेम का चित्र खींच;
2. तब उसे घेर अर्थात उसके विरुद्ध क़िला बना और उसके साम्हने दमदमा बान्ध; और छावनी डाल, और उसके चारों ओर युद्ध के यंत्र लगा।
3. तब तू लोहे की थाली ले कर उसको लोहें की शहरपनाह मान कर अपने और उस नगर के बीच खड़ा कर; तब अपना मुंह उसके साम्हने कर के उसे घेरवा, इस रीति से तू उसे घेर रखना। यह इस्राएल के घराने के लिये चिन्ह ठहरेगा।
4. फिर तू अपने बांयें पांजर के बल लेट कर इस्राएल के घराने का अधर्म अपने ऊपर रख; क्योंकि जितने दिन तू उस पांजर के बल लेटा रहेगा, उतने दिन तक उन लोगों के अधर्म का भार सहता रह।
5. मैं ने उनके अधर्म के वर्षों के तुल्य तेरे लिये दिन ठहराए हैं, अर्थात तीन सौ नब्बे दिन; उतने दिन तक तू इस्राएल के घराने के अधर्म का भार सहता रह।
6. और जब इतने दिन पूरे हो जाएं, तब अपने दाहिने पांजर के बल लेट कर यहूदा के घराने के अधर्म का भार सह लेना; मैं ने उसके लिये भी और तेरे लिये एक वर्ष की सन्ती एक दिन अर्थात चालीस दिन ठहराए हैं।