9. तब, क्या तू अपने घात करने वाले के साम्हने कहता रहेगा कि तू परमेश्वर है? तू अपने घायल करने वाले के हाथ में ईश्वर नहीं, मनुष्य ही ठहरेगा।
10. तू परदेशियों के हाथ से खतनाहीन लोगों की नाईं मारा जाएगा; क्योंकि मैं ही ने ऐसा कहा है, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है।
11. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
12. हे मनुष्य के सन्तान, सोर के राजा के विषय में विलाप का गीत बनाकर उस से कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, तू तो उत्तम से भी उत्तम है; तू बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर है।
13. तू परमेश्वर की एदेन नाम बारी में था; तेरे पास आभूषण, माणिक, पद्मराग, हीरा, फीरोज़ा, सुलैमानी मणि, यशब, नीलमणि, मरकद, और लाल सब भांति के मणि और सोने के पहिरावे थे; तेरे डफ और बांसुलियां तुझी में बनाई गईं थीं; जिस दिन तू सिरजा गया था; उस दिन वे भी तैयार की गई थीं।
14. तू छानेवाला अभिषिक्त करूब था, मैं ने तुझे ऐसा ठहराया कि तू परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर रहता था; तू आग सरीखे चमकने वाले मणियों के बीच चलता फिरता था।
15. जिस दिन से तू सिरजा गया, और जिस दिन तक तुझ में कुटिलता न पाई गई, उस समय तक तू अपनी सारी चालचलन में निर्दोष रहा।
16. परन्तु लेन-देन की बहुतायत के कारण तू उपद्रव से भर कर पापी हो गया; इसी से मैं ने तुझे अपवित्र जान कर परमेश्वर के पर्वत पर से उतारा, और हे छाने वाले करूब मैं ने तुझे आग सरीखे चमकने वाले मणियों के बीच से नाश किया है।
17. सुन्दरता के कारण तेरा मन फूल उठा था; और वैभव के कारण तेरी बुद्धि बिगड़ गई थी। मैं ने तुझे भूमि पर पटक दिया; और राजाओं के साम्हने तुझे रखा कि वे तुझ को देखें।