6. उनके जाले कपड़े का काम न देंगे, न वे अपने कामों से अपने को ढाप सकेंगे। क्योंकि उनके काम अनर्थ ही के होते हैं, और उनके हाथों से अपद्रव का काम होता है।
7. वे बुराई करने को दौड़ते हैं, और निर्दोष की हत्या करने को तत्पर रहते हैं; उनकी युक्तियां व्यर्थ हैं, उजाड़ और विनाश ही उनके मार्गों में हैं।
8. शान्ति का मार्ग वे जानते ही नहीं और न उनके व्यवहार में न्याय है; उनके पथ टेढ़े हैं, जो कोई उन पर चले वह शान्ति न पाएगा॥
9. इस कारण न्याय हम से दूर है, और धर्म हमारे समीप ही नहीं आता हम उजियाले की बाट तो जोहते हैं, परन्तु, देखो अन्धियारा ही बना रहता है, हम प्रकाश की आशा तो लगाए हैं, परन्तु, घोर अन्धकार ही में चलते हैं।
10. हम अन्धों के समान भीत टटोलते हैं, हां, हम बिना आंख के लोगों की नाईं टटोलते हैं; हम दिन-दोपहर रात की नाईं ठोकर खाते हैं, हृष्ट-पुष्टों के बीच हम मुर्दों के समान हैं।
11. हम सब के सब रीछों की नाईं चिल्लाते हैं और पण्डुकों के समान च्यूं च्यूं करते हैं; हम न्याय की बाट तो जोहते हैं, पर वह कहीं नहीं; और उद्धार की बाट जोहते हैं पर वह हम से दूर ही रहता है।
12. क्योंकि हमारे अपराध तेरे साम्हने बहुत हुए हैं, हमारे पाप हमारे विरुद्ध साक्षी दे रहे हैं; हमारे अपराध हमारे संग हैं और हम अपने अधर्म के काम जानते हैं: