3. वह रूपे का ताने वाला और शुद्ध करने वाला बनेगा, और लेवियों को शुद्ध करेगा और उन को सोने रूपे की नाईं निर्मल करेगा, तब वे यहोवा की भेंट धर्म से चढ़ाएंगे।
4. तब यहूदा और यरूशलेम की भेंट यहोवा को ऐसी भाएगी, जैसी पहिले दिनों में और प्राचीनकाल में भावती थी॥
5. तब मैं न्याय करने को तुम्हारे निकट आऊंगा; और टोन्हों, और व्यभिचारियों, और झूठी किरिया खाने वालों के विरुद्ध, और जो मजदूर की मजदूरी को दबाते, और विधवा और अनाथों पर अन्धेर करते, और परदेशी का न्याय बिगाड़ते, और मेरा भय नहीं मानते, उन सभों के विरुद्ध मैं तुरन्त साक्षी दूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है॥
6. क्योंकि मैं यहोवा बदलता नहीं; इसी कारण, हे याकूब की सन्तान तुम नाश नहीं हुए।
7. अपने पुरखाओं के दिनों से तुम लोग मेरी विधियों से हटते आए हो, ओर उनका पालन नहीं करते। तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्हारी ओर फिरूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है; परन्तु तुम पूछते हो, हम किस बात में फिरें?
8. क्या मनुष्य परमेश्वर को धोखा दे सकता है? देखो, तुम मुझ को धोखा देते हो, और तौभी पूछते हो कि हम ने किस बात में तुझे लूटा है? दशमांश और उठाने की भेंटों में।
9. तुम पर भारी शाप पड़ा है, क्योंकि तुम मुझे लूटते हो; वरन सारी जाति ऐसा करती है।
10. सारे दशमांश भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजनवस्तु रहे; और सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा कर के मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोल कर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूं कि नहीं।
11. मैं तुम्हारे लिये नाश करने वाले को ऐसा घुड़कूंगा कि वह तुम्हारी भूमि की उपज नाश न करेगा, और तुम्हारी दाखलताओं के फल कच्चे न गिरेंगे, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है॥
12. तब सारी जातियां तुम को धन्य कहेंगी, क्योंकि तुम्हारा देश मनोहर देश होगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है॥