19. परन्तु उस ने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।
20. वह जाकर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे॥
21. जब यीशु फिर नाव से पार गया, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई; और वह झील के किनारे था।
22. और याईर नाम आराधनालय के सरदारों में से एक आया, और उसे देखकर, उसके पांवों पर गिरा।
23. और उस ने यह कहकर बहुत बिनती की, कि मेरी छोटी बेटी मरने पर है: तू आकर उस पर हाथ रख, कि वह चंगी होकर जीवित रहे।
24. तब वह उसके साथ चला; और बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली, यहां तक कि लोग उस पर गिरे पड़ते थे॥
25. और एक स्त्री, जिस को बारह वर्ष से लोहू बहने का रोग था।
26. और जिस ने बहुत वैद्यों से बड़ा दुख उठाया और अपना सब माल व्यय करने पर भी कुछ लाभ न उठाया था, परन्तु और भी रोगी हो गई थी।
27. यीशु की चर्चा सुनकर, भीड़ में उसके पीछे से आई, और उसके वस्त्र को छू लिया।
28. क्योंकि वह कहती थी, यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूंगी, तो चंगी हो जाऊंगी।
29. और तुरन्त उसका लोहू बहना बन्द हो गया; और उस ने अपनी देह में जान लिया, कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई।
30. यीशु ने तुरन्त अपने में जान लिया, कि मुझ में से सामर्थ निकली है, और भीड़ में पीछे फिरकर पूछा; मेरा वस्त्र किस ने छूआ?
31. उसके चेलों ने उस से कहा; तू देखता है, कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है, और तू कहता है; कि किस ने मुझे छुआ?
32. तब उस ने उसे देखने के लिये जिस ने यह काम किया था, चारों ओर दृष्टि की।