24. और यदि किसी राज्य में फूट पड़े, तो वह राज्य क्योंकर स्थिर रह सकता है?
25. और यदि किसी घर में फूट पड़े, तो वह घर क्योंकर स्थिर रह सकेगा?
26. और यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपने में फूट डाले, तो वह क्योंकर बना रह सकता है? उसका तो अन्त ही हो जाता है।
27. किन्तु कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट नहीं सकता, जब तक कि वह पहिले उस बलवन्त को न बान्ध ले; और तब उसके घर को लूट लेगा।
28. मैं तुम से सच कहता हूं, कि मनुष्यों की सन्तान के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, क्षमा की जाएगी।
29. परन्तु जो कोई पवित्रात्मा के विरूद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा: वरन वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है।
30. क्योंकि वे यह कहते थे, कि उस में अशुद्ध आत्मा है॥
31. और उस की माता और उसके भाई आए, और बाहर खड़े होकर उसे बुलवा भेजा।
32. और भीड़ उसके आसपास बैठी थी, और उन्होंने उस से कहा; देख, तेरी माता और तेरे भाई बाहर तुझे ढूंढते हैं।
33. उस ने उन्हें उत्तर दिया, कि मेरी माता और मेरे भाई कौन हैं?
34. और उन पर जो उसके आस पास बैठे थे, दृष्टि करके कहा, देखो, मेरी माता और मेरे भाई यह हैं।