32. और वे यरूशलेम को जाते हुए मार्ग में थे, और यीशु उन के आगे आगे जा रहा था: और वे अचम्भा करने लगे और जो उसके पीछे पीछे चलते थे डरने लगे, तब वह फिर उन बारहों को लेकर उन से वे बातें कहने लगा, जो उस पर आने वाली थीं।
33. कि देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उस को घात के योग्य ठहराएंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।
34. और वे उस को ठट्ठों में उड़ाएंगे, और उस पर थूकेंगे, और उसे कोड़े मारेंगे, और उसे घात करेंगे, और तीन दिन के बाद वह जी उठेगा॥
35. तब जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना ने उसके पास आकर कहा, हे गुरू, हम चाहते हैं, कि जो कुछ हम तुझ से मांगे, वही तू हमारे लिये करे।
36. उस ने उन से कहा, तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूं?
37. उन्होंने उस से कहा, कि हमें यह दे, कि तेरी महिमा में हम में से एक तेरे दाहिने और दूसरा तेरे बांए बैठे।
38. यीशु ने उन से कहा, तुम नहीं जानते, कि क्या मांगते हो? जो कटोरा मैं पीने पर हूं, क्या पी सकते हो? और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूं, क्या ले सकते हो?
39. उन्होंने उस से कहा, हम से हो सकता है: यीशु ने उन से कहा: जो कटोरा मैं पीने पर हूं, तुम पीओगे; और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूं, उसे लोगे।
40. पर जिन के लिये तैयार किया गया है, उन्हें छोड़ और किसी को अपने दाहिने और अपने बाएं बिठाना मेरा काम नहीं।
41. यह सुन कर दसों याकूब और यूहन्ना पर रिसयाने लगे।
42. और यीशु ने उन को पास बुला कर उन से कहा, तुम जानते हो, कि जो अन्यजातियों के हाकिम समझे जाते हैं, वे उन पर प्रभुता करते हैं; और उन में जो बड़ें हैं, उन पर अधिकार जताते हैं।
43. पर तुम में ऐसा नहीं है, वरन जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने।
44. और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने।
45. क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे॥