28. सो उसका नाम तुरन्त गलील के आस पास के सारे देश में हर जगह फैल गया॥
29. और वह तुरन्त आराधनालय में से निकलकर, याकूब और यूहन्ना के साथ शमौन और अन्द्रियास के घर आया।
30. और शमौन की सास ज्वर से पीडित थी, और उन्होंने तुरन्त उसके विषय में उस से कहा।
31. तब उस ने पास जाकर उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया; और उसका ज्वर उस पर से उतर गया, और वह उन की सेवा-टहल करने लगी॥
32. सन्ध्या के समय जब सूर्य डूब गया तो लोग सब बीमारों को और उन्हें जिन में दुष्टात्माएं थीं उसके पास लाए।
33. और सारा नगर द्वार पर इकट्ठा हुआ।
34. और उस ने बहुतों को जो नाना प्रकार की बीमारियों से दुखी थे, चंगा किया; और बहुत से दुष्टात्माओं को निकाला; और दुष्टात्माओं को बोलने न दिया, क्योंकि वे उसे पहचानती थीं॥
35. और भोर को दिन निकलने से बहुत पहिले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहां प्रार्थना करने लगा।
36. तब शमौन और उसके साथी उस की खोज में गए।
37. जब वह मिला, तो उस से कहा; कि सब लोग तुझे ढूंढ रहे हैं।
38. उस ने उन से कहा, आओ; हम और कहीं आस पास की बस्तियों में जाएं, कि मैं वहां भी प्रचार करूं, क्योंकि मैं इसी लिये निकला हूं।
39. सो वह सारे गलील में उन की सभाओं में जा जाकर प्रचार करता और दुष्टात्माओं को निकालता रहा॥
40. और एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।
41. उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा।