28. इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो॥
29. हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय; तुम भविष्यद्वक्ताओं की कब्रें संवारते और धमिर्यों की कब्रें बनाते हो।
30. और कहते हो, कि यदि हम अपने बाप-दादों के दिनों में होते तो भविष्यद्वक्ताओं की हत्या में उन के साझी न होते।