13. और उन से कहा, लिखा है, कि मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो।
14. और अन्धे और लंगड़े, मन्दिर में उसके पास लाए, और उस ने उन्हें चंगा किया।
15. परन्तु जब महायाजकों और शास्त्रियों ने इन अद्भुत कामों को, जो उस ने किए, और लड़कों को मन्दिर में दाऊद की सन्तान को होशाना पुकारते हुए देखा, तो क्रोधित होकर उस से कहने लगे, क्या तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?
16. यीशु ने उन से कहा, हां; क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा, कि बालकों और दूध पीते बच्चों के मुंह से तु ने स्तुति सिद्ध कराई?
17. तब वह उन्हें छोड़कर नगर के बाहर बैतनिय्याह को गया, ओर वहां रात बिताई॥
18. भोर को जब वह नगर को लौट रहा था, तो उसे भूख लगी।
19. और अंजीर का एक पेड़ सड़क के किनारे देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उस में और कुछ न पाकर उस से कहा, अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे; और अंजीर का पेड़ तुरन्त सुख गया।
20. यह देखकर चेलों ने अचम्भा किया, और कहा, यह अंजीर का पेड़ क्योंकर तुरन्त सूख गया?