21. मेरा हाथ उसके साथ बना रहेगा, और मेरी भुजा उसे दृढ़ रखेगी।
22. शत्रु उसको तंग करने न पाएगा, और न कुटिल जन उसको दु:ख देने पाएगा।
23. मैं उसके द्रोहियों को उसके साम्हने से नाश करूंगा, और उसके बैरियों पर विपत्ति डालूंगा।
24. परन्तु मेरी सच्चाई और करूणा उस पर बनी रहेंगी, और मेरे नाम के द्वारा उसका सींग ऊंचा हो जाएगा।
25. मैं समुद्र को उसके हाथ के नीचे और महानदों को उसके दाहिने हाथ के नीचे कर दूंगा।
26. वह मुझे पुकार के कहेगा, कि तू मेरा पिता है, मेरा ईश्वर और मेरे बचने की चट्टान है।
27. फिर मैं उसको अपना पहिलौठा, और पृथ्वी के राजाओं पर प्रधान ठहराऊंगा।
28. मैं अपनी करूणा उस पर सदा बनाए रहूंगा, और मेरी वाचा उसके लिये अटल रहेगी।
29. मैं उसके वंश को सदा बनाए रखूंगा, और उसकी राजगद्दी स्वर्ग के समान सर्वदा बनी रहेगी।
30. यदि उसके वंश के लोग मेरी व्यवस्था को छोड़ें और मेरे नियमों के अनुसार न चलें,
31. यदि वे मेरी विधियों का उल्लंघन करें, और मेरी आज्ञाओं को न मानें,