12. हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा।
13. क्योंकि तेरी करूणा मेरे ऊपर बड़ी है; और तू ने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है॥
14. हे परमेश्वर अभिमानी लोग तो मेरे विरुद्ध उठे हैं, और बलात्कारियों का समाज मेरे प्राण का खोजी हुआ है, और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते।
15. परन्तु प्रभु तू दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर है, तू विलम्ब से कोप करने वाला और अति करूणामय है।
16. मेरी ओर फिर कर मुझ पर अनुग्रह कर; अपने दास को तू शक्ति दे, और अपनी दासी के पुत्र का उद्धार कर॥