7. हे सेनाओं के परमेश्वर, हम को ज्यों का त्यों कर दे; और अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उद्धार हो जाएगा॥
8. तू मिस्त्र से एक दाखलता ले आया; और अन्यजातियों को निकाल कर उसे लगा दिया।
9. तू ने उसके लिये स्थान तैयार किया है; और उसने जड़ पकड़ी और फैल कर देश को भर दिया।
10. उसकी छाया पहाड़ों पर फैल गई, और उसकी डालियां ईश्वर के देवदारों के समान हुईं;
11. उसकी शाखाएं समुद्र तक बढ़ गई, और उसके अंकुर महानद तक फैल गए।
12. फिर तू ने उसके बाड़ों को क्यों गिरा दिया, कि सब बटोही उसके फलों को तोड़ते हैं?
13. जंगली सूअर उसको नाश किए डालता है, और मैदान के सब पशु उसे चर जाते हैं॥
14. हे सेनाओं के परमेश्वर, फिर आ! स्वर्ग से ध्यान देकर देख, और इस दाखलता की सुधि ले,
15. ये पौधा तू ने अपने दाहिने हाथ से लगाया, और जो लता की शाखा तू ने अपने लिये दृढ़ की है।
16. वह जल गई, वह कट गई है; तेरी घुड़की से वे नाश होते हैं।
17. तेरे दाहिने हाथ के सम्भाले हुअ पुरूष पर तेरा हाथ रखा रहे, उस आदमी पर, जिसे तू ने अपने लिये दृढ़ किया है।