15. वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उन को मानो गहिरे जलाशयों से मनमाने पिलाता था।
16. उसने चट्टान से भी धाराएं निकालीं और नदियों का सा जल बहाया॥
17. तौभी वे फिर उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे।
18. और अपनी चाह के अनुसार भोजन मांग कर मन ही मन ईश्वर की परीक्षा की।
19. वे परमेश्वर के विरुद्ध बोले, और कहने लगे, क्या ईश्वर जंगल में मेज लगा सकता है?