10. हे परमेश्वर द्रोही कब तक नामधराई करता रहेगा? क्या शत्रु, तेरे नाम की निन्दा सदा करता रहेगा?
11. तू अपना दहिना हाथ क्यों रोके रहता है? उसे अपने पांजर से निकाल कर उनका अन्त कर दे॥
12. परमेश्वर तो प्राचीन काल से मेरा राजा है, वह पृथ्वी पर उद्धार के काम करता आया है।
13. तू ने अपनी शक्ति से समुद्र को दो भाग कर दिया; तू ने जल में मगरमच्छों के सिरों को फोड़ दिया।
14. तू ने तो लिव्यातानों के सिर टुकड़े टुकड़े करके जंगली जन्तुओं को खिला दिए।
15. तू ने तो सोता खोल कर जल की धारा बहाई, तू ने तो बारहमासी नदियों को सुखा डाला।
16. दिन तेरा है रात भी तेरी है; सूर्य और चन्द्रमा को तू ने स्थिर किया है।
17. तू ने तो पृथ्वी के सब सिवानों को ठहराया; धूपकाल और जाड़ा दोनों तू ने ठहराए हैं॥
18. हे यहोवा स्मरण कर, कि शत्रु ने नामधराई की है, और मूढ़ लोगों ने तेरे नाम की निन्दा की है।