22. उनका भोजन उनके लिये फन्दा हो जाए; और उनके सुख के समय जाल बन जाए।
23. उनकी आंखों पर अन्धेरा छा जाए, ताकि वे देख न सकें; और तू उनकी कटि को निरन्तर कंपाता रह।
24. उनके ऊपर अपना रोष भड़का, और तेरे क्रोध की आंच उन को लगे।
25. उनकी छावनी उजड़ जाए, उनके डेरों में कोई न रहे।
26. क्योंकि जिस को तू ने मारा, वे उसके पीछे पड़े हैं, और जिन को तू ने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं।