11. तू ने हम को जाल में फंसाया; और हमारी कटि पर भारी बोझ बान्धा था;
12. तू ने घुड़चढ़ों को हमारे सिरों के ऊपर से चलाया, हम आग और जल से होकर गए; परन्तु तू ने हम को उबार के सुख से भर दिया है॥
13. मैं होमबलि लेकर तेरे भवन में आऊंगा मैं उन मन्नतों को तेरे लिये पूरी करूंगा,
14. जो मैं ने मुंह खोलकर मानीं, और संकट के समय कही थीं।
15. मैं तुझे मोटे पशुओं के होमबलि, मेंढ़ों की चर्बी के धूप समेत चढ़ऊंगा; मैं बकरों समेत बैल चढ़ाऊंगा॥
16. हे परमेश्वर के सब डरवैयों आकर सुनो, मैं बताऊंगा कि उसने मेरे लिये क्या क्या किया है।
17. मैं ने उसको पुकारा, और उसी का गुणानुवाद मुझ से हुआ।
18. यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता।
19. परन्तु परमेश्वर ने तो सुना है; उसने मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है॥
20. धन्य है परमेश्वर, जिसने न तो मेरी प्रार्थना अनसुनी की, और न मुझ से अपनी करूणा दूर कर दी है!