1. हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़!
2. मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूं और व्याकुल रहता हूं।
3. क्योंकि शत्रु कोलाहल और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर मुझे सताते हैं॥
4. मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है।
5. भय और कंपकपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं।
6. और मैं ने कहा, भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता!
7. देखो, फिर तो मैं उड़ते उड़ते दूर निकल जाता और जंगल में बसेरा लेता,