12. तू अपनी प्रजा को सेंत मेंत बेच डालता है, परन्तु उनके मोल से तू धनी नहीं होता॥
13. तू हमारे पड़ोसियों में हमारी नामधराई कराता है, और हमारे चारों ओर से रहने वाले हम से हंसी ठट्ठा करते हैं।
14. तू हम को अन्यजातियों के बीच में उपमा ठहराता है, और देश देश के लोग हमारे कारण सिर हिलाते हैं। दिन भर हमें तिरस्कार सहना पड़ता है,
15. और कलंक लगाने और निन्दा करने वाले के बोल से,
16. और शत्रु और बदला लेने वालों के कारण, बुरा- भला कहने वालों और निन्दा करने वालों के कारण।
17. यह सब कुछ हम पर बीता तौभी हम तुझे नहीं भूले, न तेरी वाचा के विषय विश्वासघात किया है।
18. हमारे मन न बहके, न हमारे पैर तरी बाट से मुड़े;
19. तौभी तू ने हमें गीदड़ों के स्थान में पीस डाला, और हम को घोर अन्धकार में छिपा दिया है॥
20. यदि हम अपने परमेश्वर का नाम भूल जाते, वा किसी पराए देवता की ओर अपने हाथ फैलाते,
21. तो क्या परमेश्वर इसका विचार न करता? क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातों को जानता है।
22. परन्तु हम दिन भर तेरे निमित्त मार डाले जाते हैं, और उन भेड़ों के समान समझे जाते हैं जो वध होने पर हैं॥
23. हे प्रभु, जाग! तू क्यों सोता है? उठ! हम को सदा के लिये त्याग न दे!
24. तू क्यों अपना मुंह छिपा लेता है? और हमारा दु:ख और सताया जाना भूल जाता है?
25. हमारा प्राण मिट्टी से लग गया; हमारा पेट भूमि से सट गया है।
26. हमारी सहायता के लिये उठ खड़ा हो! और अपनी करूणा के निमित्त हम को छुड़ा ले॥