3. फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गों में चलते हैं।
4. तू ने अपने उपदेश इसलिये दिए हैं, कि वे यत्न से माने जाएं।
5. भला होता कि तेरी विधियों के मानने के लिये मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए!
6. तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूंगा, और मेरी आशा न टूटेगी।
7. जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूंगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूंगा।