12. तब उसने उन को कष्ट के द्वारा दबाया; वे ठोकर खाकर गिर पड़े, और उन को कोई सहायक न मिला।
13. तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उस ने सकेती से उनका उद्धार किया;
14. उसने उन को अन्धियारे और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; और उन के बन्धनों को तोड़ डाला।
15. लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें!