15. तब उसने उन्हें मुंह मांगा वर तो दिया, परन्तु उनके प्राण को सुखा दिया॥
16. उन्होंने छावनी में मूसा के, और यहोवा के पवित्र जन हारून के विषय में डाह की,
17. भूमि फट कर दातान को निगल गई, और अबीराम के झुण्ड को ग्रस लिया।
18. और उन के झुण्ड में आग भड़क उठी; और दुष्ट लोग लौ से भस्म हो गए॥
19. उन्होंने होरब में बछड़ा बनाया, और ढली हुई मूर्ति को दण्डवत की।
20. यों उन्होंने अपनी महिमा अर्थात ईश्वर को घास खाने वाले बैल की प्रतिमा से बदल डाला।
21. वे अपने उद्धारकर्ता ईश्वर को भूल गए, जिसने मिस्त्र में बड़े बड़े काम किए थे।
22. उसने तो हाम के देश में आश्चर्यकर्म और लाल समुद्र के तीर पर भयंकर काम किए थे।
23. इसलिये उसने कहा, कि मैं इन्हें सत्यानाश कर डालता यदि मेरा चुना हुआ मूसा जोखिम के स्थान में उनके लिये खड़ा न होता ताकि मेरी जलजलाहट को ठण्डा करे कहीं ऐसा न हो कि मैं उन्हें नाश कर डालूं॥
24. उन्होंने मनभावने देश को निकम्मा जाना, और उसके वचन की प्रतीति न की।
25. वे अपने तम्बुओं में कुड़कुड़ाए, और यहोवा का कहा न माना।
26. तब उसने उनके विषय में शपथ खाई कि मैं इन को जंगल में नाश करूंगा,
27. और इनके वंश को अन्यजातियों के सम्मुख गिरा दूंगा, और देश देश में तितर बितर करूंगा॥
28. वे पोर वाले बाल देवता को पूजने लगे और मुर्दों को चढ़ाए हुए पशुओं का मांस खाने लगे।
29. यों उन्होंने अपने कामों से उसको क्रोध दिलाया और मरी उन में फूट पड़ी।
30. तब पीनहास ने उठ कर न्यायदण्ड दिया, जिस से मरी थम गई।
31. और यह उसके लेखे पीढ़ी से पीढ़ी तक सर्वदा के लिये धर्म गिना गया॥