17. उसने यूसुफ नाम एक पुरूष को उन से पहिले भेजा था, जो दास होने के लिये बेचा गया था।
18. लोगों ने उसके पैरों में बेड़ियां डाल कर उसे दु:ख दिया; वह लोहे की सांकलों से जकड़ा गया;
19. जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा।
20. तब राजा ने दूत भेज कर उसे निकलवा लिया, और देश देश के लोगों के स्वामी ने उसके बन्धन खुलवाए;
21. उसने उसको अपने भवन का प्रधान और अपनी पूरी सम्पत्ति का अधिकारी ठहराया,
22. कि वह उसके हाकिमों को अपनी इच्छा के अनुसार कैद करे और पुरनियों को ज्ञान सिखाए॥
23. फिर इस्राएल मिस्त्र में आया; और याकूब हाम के देश में परदेशी रहा।
24. तब उसने अपनी प्रजा को गिनती में बहुत बढ़ाया, और उसके द्रोहियों से अधिक बलवन्त किया।
25. उसने मिस्त्रियों के मन को ऐसा फेर दिया, कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, और उसके दासों से छल करने लगे॥
26. उसने अपने दास मूसा को, और अपने चुने हुए हारून को भेजा।