7. लगभग तीन घंटे के बाद उस की पत्नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई।
8. तब पतरस ने उस से कहा; मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी? उस ने कहा; हां, इतने ही में।
9. पतरस ने उस से कहा; यह क्या बात है, कि तुम दोनों ने प्रभु की आत्मा की परीक्षा के लिये एका किया है देख, तेरे पति के गाड़ने वाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएंगे।
10. तब वह तुरन्त उसके पांवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए: और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया।
11. और सारी कलीसिया पर और इन बातों के सब सुनने वालों पर, बड़ा भय छा गया॥
12. और प्रेरितों के हाथों से बहुत चिन्ह और अद्भुत काम लोगों के बीच में दिखाए जाते थे, (और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे।
13. परन्तु औरों में से किसी को यह हियाव न होता था, उन में जा मिलें; तौभी लोग उन की बड़ाई करते थे।
14. और विश्वास करने वाले बहुतेरे पुरूष और स्त्रियां प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे।)
15. यहां तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला लाकर, खाटों और खटोलों पर लिटा देते थे, कि जब पतरस आए, तो उस की छाया ही उन में से किसी पर पड़ जाए।
16. और यरूशलेम के आस पास के नगरों से भी बहुत लोग बीमारों और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुओं का ला लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे॥
17. तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, डाह से भर कर उठे।
18. और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया।