32. और विश्वास करने वालों की मण्डली एक चित्त और एक मन के थे यहां तक कि कोई भी अपनी सम्पति अपनी नहीं कहता था, परन्तु सब कुछ साझे का था।
33. और प्रेरित बड़ी सामर्थ से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे और उन सब पर बड़ा अनुग्रह था।
34. और उन में कोई भी दरिद्र न था, क्योंकि जिन के पास भूमि या घर थे, वे उन को बेच बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पांवों पर रखते थे।
35. और जैसी जिसे आवश्यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बांट दिया करते थे।
36. और यूसुफ नाम, कुप्रुस का एक लेवी था जिसका नाम प्रेरितों ने बरनबा अर्थात (शान्ति का पुत्र) रखा था।
37. उस की कुछ भूमि थी, जिसे उस ने बेचा, और दाम के रूपये लाकर प्रेरितों के पांवों पर रख दिए॥