11. यदि अपराधी हूं और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है; तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उन में से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उन के हाथ नहीं सौंप सकता: मैं कैसर की दोहाई देता हूं।
12. तब फेस्तुस ने मन्त्रियों की सभा के साथ बातें करके उत्तर दिया, तू ने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के पास जाएगा॥
13. और कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की।
14. और उन के बहुत दिन वहां रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस की कथा राजा को बताई; कि एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्धुआ छोड़ गया है।
15. जब मैं यरूशलेम में था, तो महायाजक और यहूदियों के पुरनियों ने उस की नालिश की; और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए।
16. परन्तु मैं ने उन को उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक मुद्दाअलैह को अपने मुद्दइयों के आमने सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले।
17. सो जब वे यहां इकट्ठे हुए, तो मैं ने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी।