22. वे इस बात तक उस की सुनते रहे; तब ऊंचे शब्द से चिल्लाए, कि ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहता उचित नहीं।
23. जब वे चिल्लाते और कपड़े फेंकते और आकाश में धूल उड़ाते थे;
24. तो पलटन के सूबेदार ने कहा; कि इसे गढ़ में ले जाओ; और कोड़े मार कर जांचो, कि मैं जानूं कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं।
25. जब उन्होंने उसे तसमों से बान्धा तो पौलुस ने उस सूबेदार से जो पास खड़ा था कहा, क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो?
26. सूबेदार ने यह सुनकर पलटन के सरदार के पास जाकर कहा; तू यह क्या करता है? यह तो रोमी है।
27. तब पलटन के सरदार ने उसके पास आकर कहा; मुझे बता, क्या तू रोमी है? उस ने कहा, हां।
28. यह सुनकर पलटन के सरदार ने कहा; कि मैं ने रोमी होने का पद बहुत रूपये देकर पाया है: पौलुस ने कहा, मैं तो जन्म से रोमी हूं।
29. तब जो लोग उसे जांचने पर थे, वे तुरन्त उसके पास से हट गए; और पलटन का सरदार भी यह जानकर कि यह रोमी है, और मैं ने उसे बान्धा है, डर गया॥
30. दूसरे दिन वह ठीक ठीक जानने की इच्छा से कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगाते हैं, उसके बन्धन खोल दिए; और महायाजकों और सारी महासभा को इकट्ठे होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उन के साम्हने खड़ा कर दिया॥