9. दूसरे दिन, जब वे चलते चलते नगर के पास पहुंचे, तो दो पहर के निकट पतरस कोठे पर प्रार्थना करने चढ़ा।
10. और उसे भूख लगी, और कुछ खाना चाहता था; परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे, तो वह बेसुध हो गया।
11. और उस ने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक पात्र बड़ी चादर के समान चारों कोनों से लटकता हुआ, पृथ्वी की ओर उतर रहा है।
12. जिस में पृथ्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगने वाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे।
13. और उसे एक ऐसा शब्द सुनाईं दिया, कि हे पतरस उठ, मार के खा।
14. परन्तु पतरस ने कहा, नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैं ने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।
15. फिर दूसरी बार उसे शब्द सुनाईं दिया, कि जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कह।
16. तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह पात्र आकाश पर उठा लिया गया॥
17. जब पतरस अपने मन में दुविधा कर रहा था, कि यह दर्शन जो मैं ने देखा क्या है, तो देखो, वे मनुष्य जिन्हें कुरनेलियुस ने भेजा था, शमौन के घर का पता लगाकर डेवढ़ी पर आ खड़े हुए।