5. क्योंकि उसके पाप स्वर्ग तक पहुंच गए हैं, और उसके अधर्म परमेश्वर को स्मरण आए हैं।
6. जैसा उस ने तुम्हें दिया है, वैसा ही उस को भर दो, और उसके कामों के अनुसार उसे दो गुणा बदला दो, जिस कटोरे में उस ने भर दिया था उसी में उसके लिये दो गुणा भर दो।
7. जितनी उस ने अपनी बड़ाई की और सुख-विलास किया; उतनी उस को पीड़ा, और शोक दो; क्योंकि वह अपने मन में कहती है, मैं रानी हो बैठी हूं, विधवा नहीं; और शोक में कभी न पडूंगी।
8. इस कारण एक ही दिन में उस पर विपत्तियां आ पड़ेंगी, अर्थात मृत्यु, और शोक, और अकाल; और वह आग में भस्म कर दी जाएगी, क्योंकि उसका न्यायी प्रभु परमेश्वर शक्तिमान है।
9. और पृथ्वी के राजा जिन्हों ने उसके साथ व्यभिचार, और सुख-विलास किया, जब उसके जलने का धुआं देखेंगे, तो उसके लिये रोएंगे, और छाती पीटेंगे।
10. और उस की पीड़ा के डर के मारे दूर खड़े हो कर कहेंगे, हे बड़े नगर, बाबुल! हे दृढ़ नगर, हाय! हाय! घड़ी ही भर में तुझे दण्ड मिल गया है।
11. और पृथ्वी के व्यापारी उसके लिये रोएंगे और कलपेंगे क्योंकि अब कोई उन का माल मोल न लेगा।
12. अर्थात सोना, चान्दी, रत्न, मोती, और मलमल, और बैंजनी, और रेशमी, और किरिमजी कपड़े, और हर प्रकार का सुगन्धित काठ, और हाथीदांत की हर प्रकार की वस्तुएं, और बहुमोल काठ, और पीतल, और लोहे, और संगमरमर के सब भांति के पात्र।
13. और दारचीनी, मसाले, धूप, इत्र, लोबान, मदिरा, तेल, मैदा, गेहूं, गाय, बैल, भेड़, बकिरयां, घोड़े, रथ, और दास, और मनुष्यों के प्राण।
14. अब मेरे मन भावने फल तेरे पास से जाते रहे; और स्वादिष्ट और भड़कीली वस्तुएं तुझ से दूर हुई हैं, और वे फिर कदापि न मिलेंगी।
15. इन वस्तुओं के व्यापारी जो उसके द्वारा धनवान हो गए थे, उस की पीड़ा के डर के मारे दूर खड़े होंगे, और रोते और कलपते हुए कहेंगे।
16. हाय! हाय! यह बड़ा नगर जो मलमल, और बैंजनी, और किरिमजी कपड़े पहिने था, और सोने, और रत्नों, और मोतियों से सजा था,
17. घड़ी ही भर में उसका ऐसा भारी धन नाश हो गया: और हर एक मांझी, और जलयात्री, और मल्लाह, और जितने समुद्र से कमाते हैं, सब दूर खड़े हुए।
18. और उसके जलने का धुआं देखते हुए पुकार कर कहेंगे, कौन सा नगर इस बड़े नगर के समान है?