10. और उस से एक स्त्री मिली, जिस का भेष वेश्या का सा था, और वह बड़ी धूर्त थी।
11. वह शान्ति रहित और चंचल थी, और अपने घर में न ठहरती थी;
12. कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी, और एक एक कोने पर वह बाट जोहती थी।
13. तब उस ने उस जवान को पकड़ कर चूमा, और निर्लज्जता की चेष्टा कर के उस से कहा,
14. मुझे मेलबलि चढ़ाने थे, और मैं ने अपनी मन्नते आज ही पूरी की हैं;
15. इसी कारण मैं तुझ से भेंट करने को निकली, मैं तेरे दर्शन की खोजी थी, सो अभी पाया है।