4. तू न तो अपनी आखों में नींद, और न अपनी पलकों में झपकी आने दे;
5. और अपने आप को हरिणी के समान शिकारी के हाथ से, और चिडिय़ा के समान चिडिमार के हाथ से छुड़ा॥
6. हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो।
7. उन के न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान, और न प्रभुता करने वाला,
8. तौभी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजन वस्तु बटोरती हैं।